हमें हिन्दुस्तानी हीं रहने दो

पेड़ नामी देश में हड़कंप मची है.. आखिर कैसे.. कैसे कोई रोक दे बढ़ना..?
(नोट: कविता सबसे नीचे है.. चाहें तो व्यंग पढ़ कर कविता पढ़े, आनंद आएगा)👇👇👇
सारी पत्तियां शोर मचाना शुरू कर दीं, शाखाएं भूख हड़ताल करने लगीं, तनाएं आत्मदाह करने पर उतारू हो गईं.. कि आखिर ऐसा भेद-भाव क्यों..?
दरअसल, बात ये हुई थी, कि अब तनाओं को खाना बनाना था, पत्तियों को तनाओं की जगह पेड़ को मजबूती से पकड़ना था..!
आख़िर कोई क्या कहता..जब जड़ों ने हीं आदेश पारित कर दिया हो..!
पेड़ नमक वह देश बेचारा लाचार पड़ा हुआ था..वो भी क्या करता, जब जड़ें हीं उसकी चिंता ना करें।
उपरोक्त अनुच्छेद पढ़ने के पश्चात आप निम्नांकित कुछ प्रश्नों के उत्तर अपने मन में रखें, और तब लेख को पढ़े।

क्या पेड़ नमक वह देश तरक्की कर पाएगा..जब ऐसी परिस्थितियां उसके सामने हो..?

क्या जड़ों का यह फ़रमान किसी भी दृष्टि से उचित है..?
मुझे पता है, आपका उत्तर ना हीं रहा होगा! और यह विडम्बना हीं है, कि आज़ादी के पश्चात हम और गुलाम बनते चले गए..! ये जंजीरें आख़िर क्यों..? ये बंधने आख़िर क्यों..?
आरक्षण.. नाम से वाक़िफ तो होंगे आप..!
इस शब्द में "क्षण" तो है, किन्तु यह क्षणभंगुर नहीं, ये हमारे देश में 70 वर्षों से चली आ रही एक परंपरा है..जो (उम्मीद है) आगे भी चलती ही रहेगी।

हम ये सोचते हैं, कि आखिर हमारा देश तरक्की में इतना पीछे क्यों है..तो आइए, मैं एक छोटी सी वजह आपको बता दूं।
एक व्यक्ति, जो 80 अंक लाकर घर बैठा है, और उसकी जगह 60 अंक लाकर दूसरा व्यक्ति उसी काम को कर रहा है..!
अब प्रश्न उठा, कि दोनों में बेहतर तरीके से काम को कौन कर सकता था..और आरक्षण के नाम पर उसे किसने किया..तथा अंत में हम बेहतर फल की उम्मीद ही क्यों करें..?
उम्मीद इसलिए..क्योंकि कहा गया है..उम्मीद पर दुनिया कायम है..हाहाहा..!
किन्तु, स्मृति में छाप कैसी गई..ये देखना अति आवश्यक है; क्योंकि ये स्मृतियां भी आरक्षण की भांति क्षणभंगुर नहीं हैं..ये तब तक चलेंगी..जब तक सांसों के बोझ से यह शरीर भारी बना रहेगा..!
अब मैं सब कुछ आप पर छोड़ता हूं, मेरा कार्य है कविता करना..तो पेश है ये कविता..जो आरक्षण की चोट हृदय तक पहुंचने के बाद शब्दों का एक जाल सा बन कर बुन गईं..। पसंद आए..तो शेयर जरुर करें..।
⊱✿ ✣ ✿⊰
(कविता)
ऐ राजनीतिज्ञों, धर्म मजहब के नाम से ना बांट दो,
दलित सवर्ण के इंतियाज में, हम सब को ना छांट दो;
ना रोको बहती धाराओं को, विकराल रूप पकड़ लेंगी,
पूरे राष्ट्र को अपने, भयप्रद प्रवाह में जकड़ लेंगी,
स्नेह रूपी इन धाराओं को, स्वतंत्र रूप से बहने दो,
हम हैं हिन्दुस्तानी, हमें हिन्दुस्तानी हीं रहने दो।
हम हैं हिन्दुस्तानी, हमें हिन्दुस्तानी हीं रहने दो।
⊱✿ ✣ ✿⊰


हमारी कविताओं को YouTube पर देखने के लिए subscribe करें हमारे YouTube channel "उज्ज्वल की कविताएं" को।
channel तक पहुंचने के लिए ऊपर 👆channel के नाम पर click करें।
धन्यवाद।

Comments